लेखक:सुरज राना, धनगढी ०७- देवरिया
आशरै आशरामे रात कटिगै नाआइ बिन्की फोन ,
मोबाइलमे रातभर नजर गै ना मिलो मोके सोन ।
बिन्की चार्ज पुरी निभटि चार्ज करन बे भुलगै ,
आशरामे रात कटि मेरी पर चार्जकि चक्करमे बेहु झुलगै ।
आसपास अधियारो रहए दिखाबए अधा कुप्प ,
रातभर फोनकि चक्करमे मए रहओ चुप्प ।
कल्हकि अधुरी बात मोके तुम आज जरुर बतैयौ,
चार्ज कर्लियौ फुल मोबाइलकि डन्डा जिन घटैयौ ।
लगजात बिल्लौनो जवानीमे एक दिन मस्कन ना पात,
निध मरओ रातभर उल्टै बिन्की याद खोबए सतात ।